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राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां - Rajasthan Ki Pramukh Lok Deviya Rajasthan GK PDF Notes in Hindi |  राजस्थान की लोक देवियां ट्रिक | राजस्थान की लोक देवियां pdf | Rajasthan Lok Deviya trick | Rajasthan ki Lokdeviya PDF | राजस्थान के लोक देवता के प्रश्न उत्तर pdf
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Rajasthan Ki Pramukh Lok Deviya | राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां | PDF Download

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Rajasthan Ki Pramukh Lok Deviya (राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां) – Rajasthan GK in Hindi

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – Rajasthan Ki Pramukh Lok Deviya Rajasthan GK PDF Notes in Hindi |  राजस्थान की लोक देवियां ट्रिक | राजस्थान की लोक देवियां pdf | Rajasthan Lok Deviya trick | Rajasthan ki Lokdeviya PDF | राजस्थान के लोक देवता के प्रश्न उत्तर pdf


आज की पोस्ट में हम rajasthan की ‘राजस्थान की लोक देवियां’ के बारे में जानेंगे। राजस्थान के लोगों में लोकदेवियों की शक्ति के अवतार के रूप में बहुत मान्यता है। यहाँ जन्मी कई कन्याओं ने लोक कल्याणकारी कार्य कर अपने अलौकिक चमत्कारों से लोगो के दुःख-दर्द दूर किये थे। इन कन्याओं को यहाँ देवी रूप में प्रतिष्ठापित कर पूजनीय समझा गया। इस लेख में हम राजस्थान में पूजनीय इन्ही देवी स्वरूपों का अध्ययन करेंगे।

1. करणी माता :-

  • उपनाम – डोकरी, चूहों की देवी, जोगमाया, जगत माता का अवतार आदि।
  • जन्म – सुआप गांव (जोधपुर) 
  • पिता का नाम – मेहाजी जी चारण।
  • माता का नाम – देवलबाई।
  • बचपन का नाम – रिद्धि बाई।
  • मुख्य मंदिर – देशनोक (बीकानेर)
  • करणी माता का मंदिर मठ कहलाताहै।
  • करणी माता की इष्ट देवी – तेमड़ा माता। ( देशनोक में तेमड़ा माता का मंदिर भी है)
  • करणी माता ने मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव रखी थी।
  • सफेद चील को करणी माता का रूप माना जाता है।
  • बीकानेर के राठौड़ों की कुलदेवी।
  • राव बिका ने इन्ही के आशीर्वाद से बीकानेर राज्य की स्थापना की थी
  • करणी माता के इस मूल मंदिर का निर्माण – राव राजा जैतसिंह द्वारा (19वीं शताब्दी )
  • मंदिर का वर्तमान भव्य स्वरूप – महाराजा सूरत सिंह। 
  • मेला – प्रतिवर्ष चैत्र एवं आश्विन के नवरात्र में।
  • करणी माता ने अपनी बहन गुलाब कंवर के बेटे लखन को गोद लिया था, जो श्रावण मास की पूर्णिमा (रक्षाबंधन) को कोलायत झील (बीकानेर) में डूब गया था।
  • कोलायत झील में कपिल मुनि के मेले में चारण समुदाय के लोग नहीं जाते हैं।
  • मंदिर में पुजारी – चारण।
  • मंदिर को चूहों का मंदिर भी कहा जाता है। (इस मंदिर में सर्वाधिक चूहे पाए जाते हैं)
  • काबा – करणी माता के इस मंदिर में पाए जाने वाले सफेद चूहे  (इनके दर्शन शुभ माने जाते हैं)
  • करणी माता के मंदिर में स्थित दो विशाल कड़ाही का नाम सावन-भादो हैं।
  • नेहङी नामक स्थान पर करणी माता सर्वप्रथम रही
  • धनेरी तलाई नामक स्थान से मृत्यु लोक से प्रयाग किया।
  •  नोट –
    • सावन भादो झील – अचलगढ
    • सावन भादो नहर – कोटा
    • महल – डीग (भरतपुर)

जीण माता :-

  • उपनाममधुमक्खियों की देवी, भ्रामरी माता, शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी आदि।
  • जन्म – धांधू गांव (सीकर) 
  • पिता का नाम – धंधराय।
  • भाई – हर्ष
  • मूल नाम – जवंती बाई
  • कुलदेवी – चौहानों की कुलदेवी
  •  मंदिर – हर्ष की पहाड़ी पर रेवासा (सीकर)
  • इनके मंदिर के पीछे भामरिया माता का मंदिर है
  • मंदिर का निर्माण – पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय राजा हट्टड़ द्वारा (1064 ई. में)
  • जीण माता के इस मंदिर में जीण माता की अष्टभुजी प्रतिमा विराजमान है।
  • जीण माता के मंदिर के पास ही उनके भाई हर्ष का भी मंदिर है जिसका निर्माण चौहान राजा गूवक ने करवाया था।
  • जीण माता को पहले बकरे की बलि दी जाती है। जबकि वर्तमान में बकरे के कान की प्रतीकात्मक रूप में बलि दी जाती है एवं माता को ढाई प्याले शराब चढ़ती है, 
  • मेला – प्रति वर्ष चैत्र एवं आश्विन के नवरात्र में  
  • जीण माता का लोकगीत सभी देवी-देवताओं में  सबसे लंबा है। जो ‘चिरंजा’ कहलाता है । (रस – करुण रस)

कैला देवी :-

  • करौली के जादौन राजवंश / यदुवंशी राजवंश (यादवों) की कुलदेवी 
  •  मंदिर – त्रिकूट पहाड़ी पर कालीसिल नदी के किनारे  (करौली)
  • इस मंदिर का निर्माण – गोपाल सिंह द्वारा 19वीं शताब्दी में 
  • इन्हें हनुमान जी की माता एवं कृष्ण की बहन माना जाता है
  • भक्त लोग कैला देवी की आराधना में प्रसिद्ध लांगुरिया व जोगणिया गीत गाते हैं।
  • मेला – चैत्र शुक्ल अष्टमी (लक्खी मेला)
  • केला देवी का घुटकन नृत्य प्रसिद्ध है, जिसे गुर्जर एवं मीणा जाति के लोग करते हैं।
  • कैला देवी के इस मंदिर के सामने बोहरा भक्त की छतरी स्थित है। जहाँ छोटे बच्चों का इलाज किया जाता है 
  • कैला देवी को कभी मांस का भोग नहीं लगता है।

शिला देवी / अन्नपूर्णा माता :-

  • जलेब चौक, आमेर दुर्ग (जयपुर)
  • आमेर के कछवाहा वंश की कुल देवी
  • आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम ने पूर्वी बंगाल के राजा केदार को पराजित कर ‘जस्सोर’ नामक स्थान से अष्टभुजी भगवती की मूर्ति (काले पत्थर की) 16वीं शताब्दी में आमेर लाए थे।
  • आमेर लाकर उन्होंने आमेर दुर्ग में स्थित जलेब चौक के दक्षिणी-पश्चिमी कोने में मंदिर बनवाया था। 
  • मंदिर का पुनर्निर्माण (वर्तमान स्वरूप) – मिर्जा राजा जयसिंह
  • शिलादेवी की मूर्ति के ऊपर के हिस्से पर पंच देवों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है।
  • इस माता की मूर्ति के बाईं ओरहिंग्लाज माता की अष्टधातु की प्रतिमा है।
  • शिलोदवी की अष्टभुजी प्रतिमा महिषासुर मर्दिनी के रूप में विराजमान है।
  • शिला देवी के इस मंदिर में सबसे पहले नरबलि तथा बाद में छागबलि दी जाती थी। इस मंदिर में नरबलि पर रोक सवाई जयसिंह ने लगाई थी।
  • शिला देवी को ढाई प्याला शराब चढ़ती है, यहां पर भक्तों को शराब एवं जल का चरणामृत दिया जाता है।
  • मेला – चैत्र एवं आश्विन के नवरात्र में  

शीतला माता :-

  • मंदिर – शील की डूंगरी, चाकसू गांव (जयपुर) में  व कागा (जोधपुर)
  • शीतला माता के उपनाम – चेचक की देवी, सेढ़ल माता, बोदरी देवी, महामाई, बच्चों की सरंक्षिका आदि।
    • उत्तरी भारत – महामाई / माता माई
    • दक्षिणी भारत – अनामा माई
    • राजस्थान – सेढ़ल माता के नाम से जाना जाता है 
  • शीतला माता के इस मंदिर का निर्माण सवाई माधो सिंह प्रथम  ने करवाया था।
  • शीतला माता के इस मंदिर में मूर्ति की जगह पत्थर के खंड है।
  • एकमात्र देवी जिसकी खंडित प्रतिमा की पूजा की जाती है
  • वाहन – गधा।
  • पुजारी – कुम्हार।
  • प्रतीक चिन्ह – मिट्टी की कटोरियाँ (दीपक)/ खेजड़ी की टहनी
  • मेला –  प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतलाष्टमी) 
  • इस माता के मेले को बैलगाड़ी मेले के नाम से जाना जाता है
  • इस दिन शीतला माता को ठंडा भोजन का भोग  लगाया जाता है। जिसे बास्योड़ा कहा जाता है।

सचिया माता :-

  • मंदिर – ओसियां (जोधपुर)
  • ओसवालो की कुलदेवी 
  • सचिया माता को सांप्रदायिक सद्भाव की देवी कहा जाता है।
  • सचिया माता के इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में प्रतिहार शैली में उपलदेव ने करवाया था।

सती माता/दादी जी :-

  • अग्रवालों की कुलदेवी 
  • मूल नाम – नारायण बाई।
  • दादीजी के नाम से पूजी जाती है । 
  • पति का नाम – तन-धन दास।
  • मंदिर – झुंझुनू 
  • यह मंदिर विश्व का सबसे बड़ा सती माता का मंदिर है। (2nd – खेमी सती का मंदिर, झुंझुनूं)
  •  मेला – प्रतिवर्ष भाद्रपद अमावस्या 
  • 1987 ईस्वी में दिवराला (सीकर) की मोहनसिंह की पत्नी रूपकंवर सती (rajasthan की अंतिम सती) हुई इसके बाद रानी सती के इस मेले पर रोक लगा दी गई। 

नारायणी माता :-

  • मंदिर – बरवा की डूंगरी, राजगढ़ (अलवर) 11वीं सदी में प्रतिहार शैली में
  • नाइयों की कुलदेवी 
  • पुजारी – मीणा जाति 
  • वर्तमान समय में नाई एवं मीणा जाति के लोगों के बीच पूजा को लेकर विवाद चल रहा है।
  • मेला – वैसाख शुक्ल एकादशी

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – Rajasthan Ki Pramukh Lok Deviya (Rajasthan GK in Hindi)

सुगाली माता :-

  • आऊवा (पाली)
  • आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत की ईष्ट देवी / आऊवा के चम्पावतों की कुलदेवी
  • 1857 की क्रांति की देवी
  • प्रतिमा के 10 सिर व 54 हाथ है
  • वर्तमान में सुगाली माता की मूर्ति पाली के बागड़ संग्रहालय में रखी गई है, इससे पहले यह अजमेर के राजपूताना म्यूजियम में थी।

आई माता :-

  • मंदिर – बिलाड़ा गांव (जोधपुर) 
  • सीरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी 
  • जन्म – अंबापुर (गुजरात) 
  • बचपन का नाम – जीजाबाई 
  • रामदेवजी की शिष्या व नवदुर्गा का अवतार
  • आई माता के मंदिर को दरगाह कहा जाता है।
  • थान – बड़ेर 
  • आई माता के मंदिर में इनकी मूर्ति नहीं होती है।
  • मंदिर में जलने वाली अखण्ड ज्योति से केसर टपकती है।
  • इनके मंदिर में गुर्जर जाति का प्रवेश निषिद्ध है।
  • नीम वृक्ष के नीचे आई पंथ की स्थापना की जिसमे 11 नियम है

शाकंभरी माता :-

  •  मंदिर – सांभर (जयपुर) 
  • सांभर के चौहानों की कुलदेवी 
  •  मंदिर का निर्माण – वासुदेव चौहान
  • शाकंभरी माता का अन्य मंदिर – उदयपुरवाटी (झुंझुनू) एवं सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) 
  • मेला – भाद्रपद शुक्ल अष्टमी

छींक माता :-

  • मंदिर – गोपाल जी का रास्ता जयपुर   
  • इस मंदिर में माघ सुदी सप्तमी को मेला लगता है।

छींछ माता :-

  • मंदिर – बांसवाडा
  • इस मंदिर में ब्रह्मा जी की आदमकद प्रतिमा है।

जमुवाय माता :-

  • कछवाहा राजपूतों की कुलदेवी 
  • मंदिर – जमवारामगढ़ (जयपुर) 

चामुंडा माता :-

  • मारवाड़ के राठौड़ों की ईष्ट देवी
  • प्रतिहार वंश की कुल देवी
  • मंदिर – मेहरानगढ़ (जोधपुर)
  • मेला – प्रति वर्ष चैत्र एवं आश्विन के नवरात्र में
  • 30 सितम्बर  2008 के आश्विन नवरात्र में चामुंडा माता के इस मंदिर में भगदड़ मचने से 227 लोगों की मृत्यु हुई थी। इसकी जांच के लिए जसराज चोपड़ा आयोग का गठन किया गया।
  • अन्य मंदिर अजमेर में स्थित चामुण्डा माता पृथ्वीराज चौहान तृतीय एवं चंदरबरदाई की कुल देवी है।

बाण माता :-

  • मंदिर – कुंभलगढ़ किले के पास, केलवाड़ा (उदयपुर) 
  • मेवाड़ के शासकों एवं सिसोदिया वंश की कुलदेवी 

तनोट माता :-

  • मंदिर – तनोट (जैसलमेर)
  • उपनाम – तनोटिया माता, रुमाल वाली देवी, थार की वैष्णो देवी, सेना के जवानों की ईष्ट देवी, भाटी शासकों की ईष्ट देवी आदि।
  • तनोट माता के मंदिर में माता की पूजा –  बीएसएफ की जवान

ज्वाला माता :-

  • ज्वाला माता जोबनेर के खंगारोत राजवंश की कुलदेवी है।
  • ज्वाला माता का प्रसिद्ध मंदिर जोबनेर(जयपुर) में स्थित है।

सकराय माता :-

  • खंडेलवालों की कुलदेवी 
  • मंदिर – उदयपुरवाटी (झुंझुनू) 
  • मेला – प्रतिवर्ष चैत्र व आश्विन के नवरात्र
  • माता ने अकाल पीड़ितों को फल, सब्जियां, कंदमूल आदि उगायेऔर सहायता की इसलिए इन्हें शाकंभरी कहा जाने लगा।
  • पुजारी – नाथ सम्प्रदाय के

चौथ माता :-

  • कंजर जाति की आराध्य देवी 
  •  मंदिर – चौथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर) 
  • महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए कार्तिक कृष्ण चतुर्थी (करवा चौथ) को चौथ माता का व्रत रखती है।

जिलाणी माता :-

  • मंदिर – बहरोड़, अलवर 
  • इस माता ने हिंदुओं को मुसलमान बनने से बचाया था।

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – Rajasthan Ki Pramukh Lok Deviya (Rajasthan GK in Hindi)

नागणेची माता :-

  • राठौड़ वंश व लोकदेवता कल्लाजी की कुलदेवी
  • मंदिर – मंडोर (जोधपुर) 
  • नागणेची माता की प्रतिमा  18 भुजाओं की है।
  • नगोणा में स्थित नागणेची माता के मंदिर की प्रतिमा लकड़ी की बनी हुई है

कुशाल माता :-

  • मंदिर – बदनोर (भीलवाड़ा) 
  • इस मंदिर का निर्माण मेवाड़ शासक महाराणा कुंभा ने 1490 ईस्वी में मालवा के शासक महमूद खिलजी को हराकर चंपानेर की संधि को विफल करने के उपलक्ष में करवाया था।
  • कुशाल माता के मंदिर के पास बैराठ माता का मंदिर स्थित है।

दधिमती माता :-

  •  मंदिर – गोठ मांगलोद, नागौर। (प्रतिहार महामारू शैली )
  • दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी 
  • मांगलोद के आस पास के क्षेत्र को पुराणों में कुशा क्षेत्र कहा गया है।

लटियाला माता/लुटियाला माता :-

  • मंदिर – फलौदी जोधपुर
  • कल्ला जाति व पुष्करणा ब्राह्मणों की कुलदेवी
  • माता के खेजड़ी के वृक्ष की पूजा, इसलिए इन्हें खेजड़ी बेरिराय भवानी कहा जाता है

आशापुरा माता :-

  • मंदिर – नाडोल, पाली
  • नाडोल के चौहानों की कुलदेवी
  • दूसरा मंदिर – मोंदरा गाँव, जालौर – यह माता जालौर के चौहानों की कुलदेवी है 
  • तीसरा मंदिर पोकरण (जैसलमेर) में है जो बिस्सा जाति की कुलदेवी है।

ब्रह्माणी माता :-

  • मंदिर – सोरसेन (बारां)
  •  कुम्हारों की कुलदेवी
  • राजस्थान की एकमात्र लोकदेवी जिसकी देवी की पीठ की पूजा की जाती हैं।
  • माता के मंदिर के पास माघ शुक्ल सप्तमी को गधों का मेला लगता है।
  • राजस्थान में सबसे प्रसिद्ध गधों का मेला – लुणियावास, जयपुर

त्रिपुरा सुंदरी :-

  • अन्य नाम – तुरतई माता
  • मंदिर – तलवाड़ा गांव (बांसवाड़ा) 
  • माता की प्रतिमा अष्टदश भुजी है
  • पांचाल जाति की कुलदेवी व वसुंधरा राजे की आराध्य देवी

विरात्रा माता :-

  • मंदिर – चौहटन, बाड़मेर।
  • भोपों की कुलदेवी 

आसावरी माता/ आवरी माता :-

  • मंदिर – निकुंभ गांव, चित्तौड़गढ़
  • यह माता लकवे कर इलाज के लिए प्रसिद्ध है।

आमजा माता :-

  • मंदिर – रीछड़े, केलवाड़ा (उदयपुर) 
  • भीलों की कुलदेवी 
  • इस माता की पूजा एक भील भोपा व एक ब्राह्मण पुजारी करता है।

अर्बुदा देवी / अधर देवी :-

  • मंदिर – माउंट आबू, सिरोही
  • मंदिर में दुर्गामाता की प्रतिमा है लकिन अर्बुदा पर्वत पर स्थित होने के कारण अर्बुदा माता
  • राजस्थान में सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित लोक देवी इसलिए राजस्थान की वैष्णोदेवी भी कहा जाता है

गिरवर माता :-

  • मंदिर – नारायण सागर बांध के किनारे, अजमेर
  • देवी के दाहिने पैर की पूजा

राजेश्वरी माता :-

  • मंदिर – भरतपुर
  • जाट राजवंश की कुलदेवी

हिंग्लाज माता :-

  • घड़सीसर, जैसलमेर
  • पूजा – राजस्थान के क्षत्रिय एवं चारण समाज द्वारा
  • मूल मंदिर – ब्लूचिस्तान,पाकिस्तान

स्वांगिया माता :-

  • मंदिर – जैसलमेर
  • जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी
  • प्रतीक – सुगनचिड़ी

कैवाय माता :-

  • किरणसरिया, परबतसर
  • दहिया वंश की कुलदेवी
  • किरणसरिया का प्राचीन नाम – सिणहाडिये
  • मंदिर निर्माण – 1056 वि. में चचदेव
  • यहाँ पर मूर्ति की स्थापना अजीतसिंह ने करवाई
  • मेला – चैत्र एवं आश्विन के नवरात्र में 

राजस्थान की अन्य लोक देवियां :-

  • अंबिका माता – जगत गांव (उदयपुर) – इस मंदिर को मेवाड़ का खजुराहो भी कहा जाता है।
  • बड़ली माता – इनका प्रसिद्ध मंदिर बेड़च नदी के किनारे छिंपो का आकोला (चित्तौड़गढ़) में है।
  • घेवर माता -कांकरोली, राजसमन्द। इनका मदिर राजसमंद झील की पाल पर राजसमंद में है। इन्होने राजसमन्द झील की नींव रखी तथा इनका मदिर राजसमंद झील की पाल पर है।
  • भदाणा माता – कोटा, भदाणा माता हाड़ा चौहानों की कुलदेवी है, इस माता के मंदिर में मूंठ की चपेट में आये लोगों का  इलाज होता है।
  • तुलजा भवानी – चित्तौड़गढ़ दुर्ग। तुलजा भवानी छत्रपति शिवजी की आराध्य देवी थी।
  • हिचकी माता – सनवाड़ गाँव (सवाई माधोपुर)
  • उंठाला माता- वल्लभनगर (उदयपुर)
  • क्षेमकरी माता – वंसतगढ़ (सिरोही)। इन्हें खीमेल माता कहते है।
  • चारभुजा देवी – खमनौर (राजसमंद)
  • मनसा माता – चुरू
  • कालिका माता –  चित्तौड़गढ़ दुर्ग(मंदिर प्रतिहार कालीन शैली) – गुहिल वंश की इष्ट देवी  
  • कालका माता – पल्लू गांव (हनुमानगढ़), सुनारों की कुल देवी है।
  • शारदा देवी – पिलानी (झुंझुनू)
  • बाण माता – उदयपुर ( सिसोदियों की कुलदेवी)

विभिन्न रियासतों की देवियां :-

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – Rajasthan Ki Pramukh Lok Deviya (Rajasthan GK in Hindi)
विभिन्न रियासतों की देवियां
क्र. सं. रियासत  कुलदेवी 
1. जोधपुर  नागणेची माता
2. जैसलमेर   स्वांगिया माता
3. बीकानेर   करणी माता
4. उदयपुर   बाणमाता
5. सीकर   जीणमाता
6. सांभर     शाकम्भरी माता
7. आमेर    जमवाय माता
8. जालोर    आशापुरी माता
9. जयपुर    जमवाय माता
10. जोबनेर    ज्वाला माता
11. कोटा  भद्राणा माता
12. करौली    कैला देवी
13. भरतपुर    राजेश्वरी माता
14. आऊवा  सुगाली माता

विभिन्न जातियों की देवियां :-

राजस्थान की प्रमुख लोक देवियां – Rajasthan Ki Pramukh Lok Deviya (Rajasthan GK in Hindi)
विभिन्न जातियों की देवियां
क्र. सं. जाति कुलदेवी 
1. सीरवी जाति आई माता
2. कल्ला जाति  लटियाला माता
3. बिस्सा जाति  आशापुरा माता
4. ओसवाल जाति  सचिया माता
5. खंडेलवाल जाति  सकराय माता
6. नाइ जाति  नारायणी माता
7. पांचाल जाति  त्रिपुरा सुंदरी
8. भील जाति  आमजा माता
9. भोपा जाति  विरात्रा माता
10. मीणा जाति  कैला देवी
11. गुर्जर जाति  कैला देवी
12. यादव जाति  कैला देवी
13 कंजर जाति  चौथ माता

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